Friday 5 September 2014

श्री_बल्लूचांपावत

Photo: जय माँ नागणेच्या री
राजपूताना के इतिहास में सेकड़ो वीर स्वामीभक्त हुये है जिनमे से #श्री_बल्लूचांपावत जी का नाम विशेष रूप से दर्ज है, आज हम उनकी वीरता का किस्सा आप सब को बता रहे हे:- इतिहास के पन्नो में दावा एक महान राजपूत बल्लू चांपावत जी आओ जाने इस महावीर राजपूत योद्धा के बारे में राव अमर सिंह जी राठौड़ का पार्थिव शवलाने के उद्येश्य से उनका सहयोगी बल्लू चांपावत ने बादशाह से मिलने की इच्छा प्रकट की, कूटनितिग्य बादशाह ने मिलने की अनुमति दे दी, आगरा किले के दरवाजे एक-एक कर खुले और बल्लू चांपावत जी के प्रवेश के बाद पुनः बंद होते गए | अन्तिम दरवाजे पर स्वयम बादशाह बल्लू जी के सामनेआया और आदर सत्कार पूर्वक बल्लू जी से मिला | बल्लू चांपावत ने बादशाह से कहा " बादशाह सलामत जो होना था वो हो गया मै तो अपने स्वामी के अन्तिम दर्शन मात्र कर लेना चाहता हूँ और बादशाह में उसेअनुमति दे दी | इधर राव अमर सिंह के पार्थिव शव को खुले प्रांगण में एक लकड़ी के तख्त पर सैनिक सम्मान के साथ रखकर मुग़लसैनिक करीब २०-२५ गज की दुरी पर शस्त्र झुकाए खड़े थे | दुर्ग की ऊँची बुर्ज परशोक सूचक शहनाई बज रही थी | बल्लूचांपावत शोक पूर्ण मुद्रा में धीरे से झुका और पलक झपकते ही अमर सिंह के शव को उठा कर घोडे पर सवार हो ऐड लगा दी और दुर्ग के पट्ठे पर जा चढा और दुसरे क्षण वहां से निचे की और छलांग मार गया मुग़ल सैनिक ये सब देख भौचंके रह गए |दुर्ग के बाहर प्रतीक्षा में खड़ी ५००राजपूत योद्धाओं की टुकडी को अमर सिंह का पार्थिव शव सोंप कर बल्लू दुसरे घोडे पर सवार हो दुर्ग के मुख्य द्वार की तरफ रवाना हुआ जहाँ से मुग़ल अस्वारोही अमरसिंह का शव पुनः छिनने के लिए दुर्ग सेनिकल ने वाले थे,बल्लू जी मुग़ल सैनिकों को रोकने हेतु उनसे बड़ी वीरता के साथ युद्ध करते हुये वीरगति को प्राप्त हुये लेकिनवो मुग़ल सैनिको को रोकने में सफल रहे |

मित्रो इस वीर  स्वामी भक्त योद्धा के 
 सम्मान मे आज कितने लाईक मिलेगे
 ॥ जय माँ नागणेच्या जी ।। 



राजपूताना के इतिहास में सेकड़ो वीर स्वामीभक्त हुये है जिनमे से #श्री_बल्लूचांपावत जी का नाम विशेष रूप से दर्ज है, आज हम उनकी वीरता का किस्सा आप सब को बता रहे हे:- इतिहास के पन्नो में दावा एक महान राजपूत बल्लू चांपावत जी आओ जाने इस महावीर राजपूत योद्धा के बारे में राव अमर सिंह जी राठौड़ का पार्थिव शवलाने के उद्येश्य से उनका सहयोगी बल्लू चांपावत ने बादशाह से मिलने की इच्छा प्रकट की, कूटनितिग्य बादशाह ने मिलने की अनुमति दे दी, आगरा किले के दरवाजे एक-एक कर खुले और बल्लू चांपावत जी के प्रवेश के बाद पुनः बंद होते गए | अन्तिम दरवाजे पर स्वयम बादशाह बल्लू जी के सामनेआया और आदर सत्कार पूर्वक बल्लू जी से मिला | बल्लू चांपावत ने बादशाह से कहा " बादशाह सलामत जो होना था वो हो गया मै तो अपने स्वामी के अन्तिम दर्शन मात्र कर लेना चाहता हूँ और बादशाह में उसेअनुमति दे दी | इधर राव अमर सिंह के पार्थिव शव को खुले प्रांगण में एक लकड़ी के तख्त पर सैनिक सम्मान के साथ रखकर मुग़लसैनिक करीब २०-२५ गज की दुरी पर शस्त्र झुकाए खड़े थे | दुर्ग की ऊँची बुर्ज परशोक सूचक शहनाई बज रही थी | बल्लूचांपावत शोक पूर्ण मुद्रा में धीरे से झुका और पलक झपकते ही अमर सिंह के शव को उठा कर घोडे पर सवार हो ऐड लगा दी और दुर्ग के पट्ठे पर जा चढा और दुसरे क्षण वहां से निचे की और छलांग मार गया मुग़ल सैनिक ये सब देख भौचंके रह गए |दुर्ग के बाहर प्रतीक्षा में खड़ी ५००राजपूत योद्धाओं की टुकडी को अमर सिंह का पार्थिव शव सोंप कर बल्लू दुसरे घोडे पर सवार हो दुर्ग के मुख्य द्वार की तरफ रवाना हुआ जहाँ से मुग़ल अस्वारोही अमरसिंह का शव पुनः छिनने के लिए दुर्ग सेनिकल ने वाले थे,बल्लू जी मुग़ल सैनिकों को रोकने हेतु उनसे बड़ी वीरता के साथ युद्ध करते हुये वीरगति को प्राप्त हुये लेकिनवो मुग़ल सैनिको को रोकने में सफल रहे |

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