Thursday 17 September 2015

Migration

Day 1 [Dalpat Singh Mertiya]
'And I hope not just yu but our whole country will keep that spark alive. There is smething cl about saying - I cme from the land f a billin sparks. Thank yu.' I said ending my mtivational speech at Tilak Hall. Varanasi.
The claps and whistles were my cue to leave. Security volunteers formed a human barricade and soon I managed a neat exit from the hall. 'Thank yu so much, sir,' smeone said right behind me.
I turned around to face my host/ "Mr. Mishra.' I said. ' I was looking for you.'
'Please call me Gopal.' he said. "The car is over there.'
I walked out with the young directr Gangatch College. Gopal Mishra. His black Merecedes whisked us sway frm the crowded Vidyapath Road.
'So you saw the temples and ghats?' Gopal asked. 'That's all Varanasi has. anyway.'
'Yeah. I went to the Vishwanath Temple and Dashashwamedh Ghat at five in the morning. I love this city.' I said.
'Oh god. What did you like best about Varanasi?'
'Aarti.' I said.
'What?' 'Gopal lked surprised.
'The morning aarti at the ghats. I saw it for the first time, all those diyas floating at dawn. It was out of this world.'
Gopal frowned.
'What?' I said. 'Isn't Varanasi's aarti Beautiful?
'Yeah. Yeah. it is... it is not that,' he said but did not elaborate.
'Will you drop me at Ramada Hotel?' I said.
'Your flight is only tomorrow morning/' Gopal said. ' Why don't yu come home for dinner?'
'Don't be frmal... ' I began.
'Yu have to come home. We must have a drink together. I have the finest whisky in the world.' he said.
I smiled as I shook my head. "Thanks. Gopal. but I dn't drink much.'
'Chetan sir, one drink? I can tell people I had s drink with "the" Chetan Bhagat.'
I laoughed. 'That's nothing t brag about. Still, say it if yoou want. You don't actuallay have to drink with me.'
'Nt like that, sir. I actually want to have a drink with you.'
I saw his intense eyes. He had sent me twenty invites in the last six months, until I finally agreed to come. I knew he cold persist.
'Okay, one drink!
I said hoping I wouldn't regret this later.
'Excellent,' Gopal said
We drove ten kilometer outside the city on the Lucknw Highway to reach GangaTech. The guards saluted as the campus gates opened. The car came to a halt at a gray bungalow. it a stone exterior that matched the main college and hstel buildings.
We sat in the living room on the ground floor. It opened out to a badminton cout-sized lawn.
'Nice house,' I said as I sat on a cushy brown velvet sofa. I noticed the extra-high ceiling.
'Thanks, I designed it myself. The cntractor built it, but I supervised everything,' Gopal said He proceeded t the bar cunter at the other end f the rm. 'It's the bunglow f an engineering college directr. Yu and yur frineds rainded one right?
'How do you knw? I said
'Everne knows We've read the bk. Seen the movie.'
We laughed He handed me a crystal glass filled with a generous amount of whisky.
"Thank You."
'Single malt, twelver year old', he said.
'It's the directr's bungalow, but you don't have a daughter,' said. 'You aren't evern married. The yungest direcotr I've ever seen.'
He smiled.
'How old are you?' I was curious.
'Twenty-six.' Gpal said a hint f pride in his voice. 'Not just the younest, but also the mst uneducated director you've met.'
Continue.......
जवीन तो कोरा कागज है जो लिखोगे वही पढोगे। गालियां लिख सकते हो, गीत लिख सकते हो और गालियां भी उसी वर्णमाला से

बनती है। जिससे गीत बनते है। वर्णमाला तो निरपेक्ष हैं, निष्पक्ष है। जिस कागज पर लिखते हो वह भी निरपेक्ष, निष्पक्ष। जिस कलम

से लिखते हो वह भी निरपेक्ष, वह भी निष्पक्ष। सब दांव तुम्हारे हाथ में है। तुमने इस ढंग से जीया होगा, इसलिए व्यर्थ मालूम होता

है। तुम्हारे जीने में भूल है। और जीवन को गाली मत देना।
यह बड़े मजे की बात हैं! लोग कहते है, जीन व्यर्थ हैं यह नहीं कहते कि हमारे जीने का ढंग व्यर्थ है! और तुम्हारे तथाकथित

साधु-संत, महात्मा भी तुमको यही समझाते हैं -जीवन व्यर्थ है।
 मैं तुमसे कुछ और कहना चाहता हूं। मैं कहना चाहता हूं जीवन न तो सार्थक है, न व्यर्थ; जीवन तो निष्पक्ष हैं; जीवन तो कोरा

आकाश है। उठाओ तूलिका, भरो रंग। चाहो तो इन्द्रधनुष बनाओं और चाहो तो कीचड़ मचा दो। कुशलता चाहिए। अगर जीवन व्यर्थ

है तो उसका अर्थ यह है कि तुमने जीवन को जीने की कला नहीं सीखी; उसका अर्थ है कि तुम यह मान कर चले थे कि कोई जीवन

में रेडीमेड अर्थ होगा।
जीवन कोई रेडीमेड कपड़े नही है, कोई सैमसन की दुकान नहीं है, कि गए और कपड़े मिल गए। जिंदगी से कपड़े बनाने पड़ते है। तो

फिर जो बनाओगे वही पहनना पड़ेगा, वही ओढ़ना पड़ेगा। और कोई दूसरा तुम्हारी जिंदगी में कुछ भी नहीं कर सकता। कोई दूसरा

तुम्हारे कपड़े नहीं बना सकता। जिंदगी के मामले में तो अपने कपड़े खुद ही बनाने होते हैं।
ओशो
दीया तले अंधेरा

Tuesday 15 September 2015

माँ के परम् भक्त ध्यानु भक्त

जिन दिनों भारत में मुगल सम्राट अकबर का शासन था , उन्ही दिनों की यह घटना है नादौन ग्राम निवासी माता का एक सेवक (ध्यानु भगत) एक हजार यात्रिओ सहित माता के दर्शन के लिए जा रहा था . इतना बड़ा दल देखकर बादशाह के सिपाहियोने चांदनी चौक दिल्ली मे उन्हें रोक लिया और अकबर के दरबार मे ले जाकर ध्यानु भगत को पेश किया
बादशाह ने पूछा : - तुम इतने आदमियो को साथ लेकर कहाँ जा रहे हो?
ध्यानु ने हाथ जोड़ कर उत्तर दिया: - मै ज्वालामाई के दर्शन के लिए जा रहा हु , मेरे साथ जो लोग है , वह भी माता जी के भगत है, और यात्रा पर जा रहे है.
अकबर ने सुनकर कहा : - यह ज्वालामाई कौन है ? और वहां जाने से क्या होगा?
ध्यानु भगत ने उत्तर दिया: - महाराज ! ज्वालामाई संसार की रचना एवं पालन करने वाली माता है! वे भगतो के सच्चे ह्रदय से की गई प्राथनाए स्वीकार करती है तथा उनकी सब मनोकामनाए पूर्ण करती है. उनका प्रताप ऐसा है की उनके स्थान पर बिना तेल - बत्ती के ज्योति जलती रहती है . हम लोग प्रतिवर्ष उनके दर्शन जाते है
अकबर बादशाह बोले : - तुम्हारी ज्वालामाई इनती ताकतवर है, इसका यकीन हमें किस तरह आये? आखिर तुम माता के भगत हो, अगर कोई करिश्मा हमें दिखाओ तो हम भी मान लेंगे
ध्यानु ने नम्रता से उत्तर दिया: - श्री मान ! मै तो माता का एक तुच्छ सेवक हु, मै भला कोई चमत्कार कैसे दिखा सकता हु?
अकबर ने कहा : - अगर तुम्हारी बंदगी पाक व् सच्ची है तो देवी माता जरुर तुम्हारी इज्जत रखेगी ! अगर वह तुम जैसे भगतो का ख्याल ना रखे तो फिर तुम्हारी इबादत का क्या फायदा ? या तो वह देवी ही यकीन के काबिल नहीं, या फिर तुम्हारी इबादत(भगती ) झूठी है. इम्तहान के लिए हम तुम्हारे घोड़े की गर्दन अलग कर देते है, तुम अपनी देवी से कहकर उसे दुबारा जिन्दा करवा लेना !
इस प्रकार घोड़े की गर्दन काट दी गई
ध्यानु भगत ने कोई उपाए ना देखकर बादशाह से एक माह की अवधि तक घोड़े के सिर व् धड को सुरक्षित रखने की प्राथना की ! अकबर ने ध्यानु भगत की बात मान ली! यात्रा करने की अनुमति भी मिल गई.
बादशाह से विदा होकर ध्यानु भगत अपने साथियो सहित माता के दरबार मे जा उपस्थित हुआ! स्नान - पूजन आदि करने के उपरान्त रात भर जागरण किया . प्रात : काल आरती के समय हाथ जोड़ कर ध्यानु ने प्राथना की - " हे मातेश्वरी! आप अन्तर्यामी है , बादशाह मेरी भगती की परीक्षा ले रहा है, मेरी लाज रखना , मेरे घोड़े को अपनी कृपया व् शक्ति से जीवित कर देना , चमत्कार पैदा करना , अपने सेवक को क्रतार्थ करना . यदि आप मेरी प्राथना स्वीकार ना करोगी तो मै भी अपना सिर काटकर आपके चरणों मे अर्पित कर दूंगा , क्योकि लज्जित होकर जीने से मर जाना अधिक अच्छा है! यह मेरी प्रतिज्ञा है आप उत्तर दे . .
कुछ समय तक मौन रहा
कोई उत्तर ना मिला
इसके पछ्चात भगत ने तलवार से अपना शीश काट कर देवी को भेंट कर दिया
उसी समय साक्षात् ज्वाला माँ , मेरी माँ मेरी राज रानी, माँ मेरी शक्ति, माँ मेरी भगवती माँ , मेरी माँ दुर्गे प्रगट हुई और ध्यानु भगत का सिर धड से जुड़ गया , भगत जीवित हो गया , माता ने भगत से कहा की मेरे ध्यानु मेरे बच्चे प्यारे , दिल्ली मे घोड़े का सिर भी धड से जुड़ गया है, चिंता छोड़ कर दिल्ली पह्चो , लज्जित होने के कारन का निवारण हो गया , और जो कुछ इच्छा है वर मांगो बेटा
ध्यानु भगत ने माता के चरणों मे शीश झुका कर प्रणाम कर निवदेन किया - हे जगदम्बे! आप सर्व शक्तिशाली है, हम मनुष्य अज्ञानी है, भगति की विधि भी नहीं जानते, फिर भी विनती करता हु की जगदमाता! आप अपने भगतो की इनती कठिन परीक्षा ना लिया करे ! प्रत्येक संसारी भगत आपको शीश भेंट नहीं दे सकता , कृपा करके , हे मातेश्वरी! किसी साधारण भेंट से ही अपने भगतो की मनोकामनाए पूर्ण किया करे
" तथास्तु ! अब से मै शीश के स्थान पर केवल नारियल की भेंट व् सच्चे ह्रदय से की गई प्राथना द्वारा ही मनोकामना पूर्ण करुँगी " यह कह कर माता अंतरध्यान हो गई
इधर तो यह घटना घटी , उधर दिल्ली मे जब मृत घोड़े के सिर व् धड , माता के कृपा से अपने आप जुड़ गए तो सब दरबारियो सहित बादशाह अकबर आश्चर्य मे डूब गए . बादशाह ने कुछ सिपाहियो को ज्वाला जी भेजा , सिपाहियो ने वापिस आकर बादशाह को सुचना दी - वह जमीन मे से रौशनी की लपटे निकल रही है, शायद उन्ही की ताकत से यह करिश्मा हुआ है, अगर आप हुक्म दे तो उन्हें बंद करवा दे, इस तरह हिन्दुओ की इबादत की जगह ही खत्म हो जाएगी. .
अकबर ने स्वीक्रति दे दी, शाही सिपाहियो ने सर्व - प्रथम माता की पवित्र ज्योति के उपर लोहे के मोटे - मोटे तवे रखवा दिए! परन्तु दिव्या ज्योति तवे फोड़कर उपर निकल आई . इसके पछ्चात एक नहर का बहाव पवित्र ज्योत की और मोड़ दिया गया . जिससे नहर का पानी निरंतर ज्योति की उपर गिरता रहे . फिर भी ज्योति का जलना बंद ना हुआ. शाही सिपाहियो ने अकबर को सुचना दे दी - जोतों का जलना बंद नही हो सकता , हमारी सारी कोशिशे नाकाम हो गई. आप जो मुनासिब हो करे , यह समाचार पाकर बादशाह अकबर दरबार ने दरबार के विद्धवान ब्राह्मणों से परामर्श किया . तथा ब्राह्मणों ने विचार करके कहा की आप स्वय जाकर देवी के चमत्कार देखे , नियमानुसार भेंट आदि चढ़ाकर देवी माता को प्रसन्न करे. बादशाह ले लिए दरबार जाने का नियम यह है की वह स्वय अपने कंधे पर स्वामन शुद्ध सोने का छत्र लादकर नंगे पैर माता के दरबार मे जाए . तत्पछ्चात स्तुति आदि करके माता से क्षमा मांग ले
अकबर ने ब्राह्मणों की बात मान ली! सवामन पक्का सोने का भव्य छत्र तैयार हुआ! फिर वह छत्र अपने कंधे पर रख कर नंगे पैर बादशाह ज्वाला जी पहचे . वहां दिव्या ज्योति के दर्शन किये , मस्तक श्रधा से झुक गया , अपने पर पछ्चाताप होने लगा , सोने का छत्र कंधे से उतर कर रखने का उपक्रम किया . . . परन्तु . . . छत्र . . . गिर कर दूट गया ! कहा जाता है वह सोने का रहा , किसी विचित्र धातु का बन गया - जो ना लोहे का था , ना पीतल, ना ताम्बा और ना ही सीसा
अर्थात देवी ने भेंट अस्वीकार कर दी
इस चमत्कार को देखकर अकबर ने अनेक प्रकार से स्तुति करते हुए माता से क्षमा की भीख मांगी और अनेक प्रकार से माता की पूजा आदि करके दिल्ली वापिस लौटा. आते ही अपने सिपाहियो को सभी भगतो से प्रेम - पूर्वक व्यवहार करने का आदेश निकाल दिया
अकबर बादशाह द्वारा चढाया गया खंडित छत्र माता जी के दरबार के बाई और आज भी पड़ा हुआ देखा जा सकता है ।
जय माँ बायण जय एकलिंग जी

Friday 5 September 2014

हिंदुआ सूरज महाराणा प्रताप एव चेतक पर कविता



"अकबर महान अगर, राणा शैतान तो
शूकर है राजा, नहीं शेर वनराज है
अकबर आबाद और राणा बर्बाद है तो
हिजड़ों की झोली पुत्र, पौरुष बेकार है
अकबर महाबली और राणा बलहीन तो
कुत्ता चढ़ा है जैसे मस्तक गजराज है
अकबर सम्राट, राणा छिपता भयभीत तो
हिरण सोचे, सिंह दल उसका शिकार है
अकबर निर्माता, देश भारत है उसकी देन
कहना यह जिनका शत बार धिक्कार है
अकबर है प्यारा जिसे राणा स्वीकार नहीं
रगों में पिता का जैसे खून अस्वीकार है ।।


राजा मानसिंह

Photo: मात सुणावै बालगां,खौफ़नाक रण-गाथ |
काबुल भूली नह अजै,ओ खांडो, ऎ हाथ ||

काबुल की भूमि अभी तक यहाँ के वीरों द्वारा किये गए प्रचंड खड्ग प्रहारों को नहीं भूल सकी है | उन प्रहारों की भयोत्पादक गाथाओं को सुनाकर माताएं बालकों कोआज भी डराकर सुलाती है |महमूद गजनी के समय से ही आधुनिक शास्त्रों से सुसज्जित यवनों के दलों ने अरब देशों से चलकर भारत पर आक्रमण करना शुरू कर दिया था | ये आक्रान्ता काबुल (अफगानिस्तान)होकर हमारे देश में आते थे अफगानिस्तान में उन दिनों पांच मुस्लिम राज्य थे,जहाँ पर भारी मात्रा में आधुनिक शास्त्रों का निर्माण होता था वे भारत पर आक्रमण करने वाले आक्रान्ताओं को शस्त्र प्रदान करते थे बदले में भारत से लूटकर ले जाने वाले धन का आधा भाग प्राप्त करते थे |इस प्रकार काबुल का यह क्षेत्र उस समय बड़ा भारी शस्त्र उत्पादक केंद्र बन गया था जिसकी मदद से पहले यवनों ने भारत में लुट की व बाद में यहाँ राज्य स्थापना की चेष्टा में लग गए | इतिहासकारों ने इस बात को छुपाया है कि बाबर के आक्रमण से पूर्व बहुत बड़ी संख्या में हिन्दू शासकों के परिवारजनों व सेनापतियों ने राज्य के लोभ में मुस्लिम धर्म अपना लिया था और यह क्रम बराबर जारी था | ऐसी परिस्थिति में आमेर के शासक भगवानदास व उनके पुत्र मानसिंह ने मुगलों से संधि कर अफगानिस्तान (काबुल) के उन पांच यवन राज्यों पर आक्रमण किया व उन्हें इस प्रकार तहस नहस किया कि वहां आज तक भी राजा मानसिंह के नाम की इतनी दहशत फैली हुई है कि वहां की स्त्रियाँ अपने बच्चों को राजा मानसिंह के नाम से डराकर सुलाती है | राजा मानसिंह ने वहां के तमाम हथियार बनाने वाले कारखानों को नष्ट कर दिया व श्रेष्ठतम हथियार बनाने वाली मशीनों को वहां लाकर जयगढ़ (आमेर) में स्थापित करवाया |इस कार्यवाही के परिणामस्वरुप ही यवनों के भारत पर आक्रमण बंद हुए व बचे-खुचे हिन्दू राज्यों को भारत मेंअपनी शक्ति एकत्रित करने का अवसर प्राप्त हुआ | मानसिंह की इस कार्यवाही को तत्कालीन संतो ने भी पूरी तरह संरक्षण दिया व उनकी मृत्यु के बाद हरिद्वार में उनकी स्मृति मेंहर की पेड़ियों पर उनकी एक विशाल छतरी बनवाई | यहाँ तक कि अफगानिस्तान के उन पांच यवन राज्यों पर विजय के चिन्ह स्वरुप जयपुर राज्य के पचरंग ध्वज को धार्मिक चिन्ह के रूप में मान्यता प्रदान की गयी व मंदिरों पर भी पचरंग ध्वज फहराया जाने लगा |आज भी लोगों की जबान पर सुनाई देता है -

माई एडो पूत जण, जैडौ मान मरद |
समदर खान्ड़ो पखारियो ,काबुल पाड़ी हद ||

नाथ सम्प्रदाय के लोग गंगा माई के भजनों में धर्म रक्षक वीरों के रूप में अन्य राजाओं के साथ राजा मानसिंह का यश गान आज भी गाते है |-लेखक स्व.आयुवानसिंह शेखावत,हुडील जी कि कलम से

मात सुणावै बालगां,खौफ़नाक रण-गाथ |
काबुल भूली नह अजै,ओ खांडो, ऎ हाथ ||

काबुल की भूमि अभी तक यहाँ के वीरों द्वारा किये गए प्रचंड खड्ग प्रहारों को नहीं भूल सकी है | उन प्रहारों की भयोत्पादक गाथाओं को सुनाकर माताएं बालकों कोआज भी डराकर सुलाती है |महमूद गजनी के समय से ही आधुनिक शास्त्रों से सुसज्जित यवनों के दलों ने अरब देशों से चलकर भारत पर आक्रमण करना शुरू कर दिया था | ये आक्रान्ता काबुल (अफगानिस्तान)होकर हमारे देश में आते थे अफगानिस्तान में उन दिनों पांच मुस्लिम राज्य थे,जहाँ पर भारी मात्रा में आधुनिक शास्त्रों का निर्माण होता था वे भारत पर आक्रमण करने वाले आक्रान्ताओं को शस्त्र प्रदान करते थे बदले में भारत से लूटकर ले जाने वाले धन का आधा भाग प्राप्त करते थे |इस प्रकार काबुल का यह क्षेत्र उस समय बड़ा भारी शस्त्र उत्पादक केंद्र बन गया था जिसकी मदद से पहले यवनों ने भारत में लुट की व बाद में यहाँ राज्य स्थापना की चेष्टा में लग गए | इतिहासकारों ने इस बात को छुपाया है कि बाबर के आक्रमण से पूर्व बहुत बड़ी संख्या में हिन्दू शासकों के परिवारजनों व सेनापतियों ने राज्य के लोभ में मुस्लिम धर्म अपना लिया था और यह क्रम बराबर जारी था | ऐसी परिस्थिति में आमेर के शासक भगवानदास व उनके पुत्र मानसिंह ने मुगलों से संधि कर अफगानिस्तान (काबुल) के उन पांच यवन राज्यों पर आक्रमण किया व उन्हें इस प्रकार तहस नहस किया कि वहां आज तक भी राजा मानसिंह के नाम की इतनी दहशत फैली हुई है कि वहां की स्त्रियाँ अपने बच्चों को राजा मानसिंह के नाम से डराकर सुलाती है | राजा मानसिंह ने वहां के तमाम हथियार बनाने वाले कारखानों को नष्ट कर दिया व श्रेष्ठतम हथियार बनाने वाली मशीनों को वहां लाकर जयगढ़ (आमेर) में स्थापित करवाया |इस कार्यवाही के परिणामस्वरुप ही यवनों के भारत पर आक्रमण बंद हुए व बचे-खुचे हिन्दू राज्यों को भारत मेंअपनी शक्ति एकत्रित करने का अवसर प्राप्त हुआ | मानसिंह की इस कार्यवाही को तत्कालीन संतो ने भी पूरी तरह संरक्षण दिया व उनकी मृत्यु के बाद हरिद्वार में उनकी स्मृति मेंहर की पेड़ियों पर उनकी एक विशाल छतरी बनवाई | यहाँ तक कि अफगानिस्तान के उन पांच यवन राज्यों पर विजय के चिन्ह स्वरुप जयपुर राज्य के पचरंग ध्वज को धार्मिक चिन्ह के रूप में मान्यता प्रदान की गयी व मंदिरों पर भी पचरंग ध्वज फहराया जाने लगा |आज भी लोगों की जबान पर सुनाई देता है -

माई एडो पूत जण, जैडौ मान मरद |
समदर खान्ड़ो पखारियो ,काबुल पाड़ी हद ||

नाथ सम्प्रदाय के लोग गंगा माई के भजनों में धर्म रक्षक वीरों के रूप में अन्य राजाओं के साथ राजा मानसिंह का यश गान आज भी गाते है |-लेखक स्व.आयुवानसिंह शेखावत,हुडील जी कि कलम से

श्री_बल्लूचांपावत

Photo: जय माँ नागणेच्या री
राजपूताना के इतिहास में सेकड़ो वीर स्वामीभक्त हुये है जिनमे से #श्री_बल्लूचांपावत जी का नाम विशेष रूप से दर्ज है, आज हम उनकी वीरता का किस्सा आप सब को बता रहे हे:- इतिहास के पन्नो में दावा एक महान राजपूत बल्लू चांपावत जी आओ जाने इस महावीर राजपूत योद्धा के बारे में राव अमर सिंह जी राठौड़ का पार्थिव शवलाने के उद्येश्य से उनका सहयोगी बल्लू चांपावत ने बादशाह से मिलने की इच्छा प्रकट की, कूटनितिग्य बादशाह ने मिलने की अनुमति दे दी, आगरा किले के दरवाजे एक-एक कर खुले और बल्लू चांपावत जी के प्रवेश के बाद पुनः बंद होते गए | अन्तिम दरवाजे पर स्वयम बादशाह बल्लू जी के सामनेआया और आदर सत्कार पूर्वक बल्लू जी से मिला | बल्लू चांपावत ने बादशाह से कहा " बादशाह सलामत जो होना था वो हो गया मै तो अपने स्वामी के अन्तिम दर्शन मात्र कर लेना चाहता हूँ और बादशाह में उसेअनुमति दे दी | इधर राव अमर सिंह के पार्थिव शव को खुले प्रांगण में एक लकड़ी के तख्त पर सैनिक सम्मान के साथ रखकर मुग़लसैनिक करीब २०-२५ गज की दुरी पर शस्त्र झुकाए खड़े थे | दुर्ग की ऊँची बुर्ज परशोक सूचक शहनाई बज रही थी | बल्लूचांपावत शोक पूर्ण मुद्रा में धीरे से झुका और पलक झपकते ही अमर सिंह के शव को उठा कर घोडे पर सवार हो ऐड लगा दी और दुर्ग के पट्ठे पर जा चढा और दुसरे क्षण वहां से निचे की और छलांग मार गया मुग़ल सैनिक ये सब देख भौचंके रह गए |दुर्ग के बाहर प्रतीक्षा में खड़ी ५००राजपूत योद्धाओं की टुकडी को अमर सिंह का पार्थिव शव सोंप कर बल्लू दुसरे घोडे पर सवार हो दुर्ग के मुख्य द्वार की तरफ रवाना हुआ जहाँ से मुग़ल अस्वारोही अमरसिंह का शव पुनः छिनने के लिए दुर्ग सेनिकल ने वाले थे,बल्लू जी मुग़ल सैनिकों को रोकने हेतु उनसे बड़ी वीरता के साथ युद्ध करते हुये वीरगति को प्राप्त हुये लेकिनवो मुग़ल सैनिको को रोकने में सफल रहे |

मित्रो इस वीर  स्वामी भक्त योद्धा के 
 सम्मान मे आज कितने लाईक मिलेगे
 ॥ जय माँ नागणेच्या जी ।। 



राजपूताना के इतिहास में सेकड़ो वीर स्वामीभक्त हुये है जिनमे से #श्री_बल्लूचांपावत जी का नाम विशेष रूप से दर्ज है, आज हम उनकी वीरता का किस्सा आप सब को बता रहे हे:- इतिहास के पन्नो में दावा एक महान राजपूत बल्लू चांपावत जी आओ जाने इस महावीर राजपूत योद्धा के बारे में राव अमर सिंह जी राठौड़ का पार्थिव शवलाने के उद्येश्य से उनका सहयोगी बल्लू चांपावत ने बादशाह से मिलने की इच्छा प्रकट की, कूटनितिग्य बादशाह ने मिलने की अनुमति दे दी, आगरा किले के दरवाजे एक-एक कर खुले और बल्लू चांपावत जी के प्रवेश के बाद पुनः बंद होते गए | अन्तिम दरवाजे पर स्वयम बादशाह बल्लू जी के सामनेआया और आदर सत्कार पूर्वक बल्लू जी से मिला | बल्लू चांपावत ने बादशाह से कहा " बादशाह सलामत जो होना था वो हो गया मै तो अपने स्वामी के अन्तिम दर्शन मात्र कर लेना चाहता हूँ और बादशाह में उसेअनुमति दे दी | इधर राव अमर सिंह के पार्थिव शव को खुले प्रांगण में एक लकड़ी के तख्त पर सैनिक सम्मान के साथ रखकर मुग़लसैनिक करीब २०-२५ गज की दुरी पर शस्त्र झुकाए खड़े थे | दुर्ग की ऊँची बुर्ज परशोक सूचक शहनाई बज रही थी | बल्लूचांपावत शोक पूर्ण मुद्रा में धीरे से झुका और पलक झपकते ही अमर सिंह के शव को उठा कर घोडे पर सवार हो ऐड लगा दी और दुर्ग के पट्ठे पर जा चढा और दुसरे क्षण वहां से निचे की और छलांग मार गया मुग़ल सैनिक ये सब देख भौचंके रह गए |दुर्ग के बाहर प्रतीक्षा में खड़ी ५००राजपूत योद्धाओं की टुकडी को अमर सिंह का पार्थिव शव सोंप कर बल्लू दुसरे घोडे पर सवार हो दुर्ग के मुख्य द्वार की तरफ रवाना हुआ जहाँ से मुग़ल अस्वारोही अमरसिंह का शव पुनः छिनने के लिए दुर्ग सेनिकल ने वाले थे,बल्लू जी मुग़ल सैनिकों को रोकने हेतु उनसे बड़ी वीरता के साथ युद्ध करते हुये वीरगति को प्राप्त हुये लेकिनवो मुग़ल सैनिको को रोकने में सफल रहे |

मेवाड़ के एक महान योद्धा राणा कुम्भा


राणा कुम्भामेवाड़ के एक महान योद्धा व सफल शासक थे। 1418 ई. में लक्खासिंह की मृत्यु के बाद उसका पुत्र मोकल मेवाड़ का राजा हुआ, किन्तु 1431 ई. में उसकी मृत्यु हो गई और उसका उत्तराधिकारी 'राणा कुम्भा' हुआ। राणा कुम्भा स्थापत्य का बहुत अधिक शौकीन था। मेवाड़ में निर्मित 84 क़िलों में से 32 क़िलों का निर्माण उसने करवाया था। इसके अतिरिक्त और भी बहुत सी इमारतें तथा मन्दिरों आदि का निर्माण भी उसने करवाया। 1473 ई. में राणा कुम्भा के पुत्र उदयसिंह ने उसकी हत्या कर दी।
महान शासक
राणा कुम्भा ने अपने प्रबल प्रतिद्वन्द्वी मालवा के शासक हुसंगशाह को परास्त कर 1448 ई. में चित्तौड़ में एक ‘कीर्ति स्तम्भ’ की स्थापना की। स्थापत्य कला के क्षेत्र में उसकी अन्य उपलब्धियों में मेवाड़ में निर्मित 84 क़िलों में से 32 क़िले हैं, जिसे राणा कुम्भा ने बनवाया था। मध्यकालीन भारत के शासकों में राणा कुम्भा कि गिनती एक महान शासक के रूप में होती थी।
साहित्य प्रेमी
वह स्वयं एक अच्छा विद्वान तथा वेद, स्मृति, मीमांसा, उपनिषद, व्याकरण, राजनीति और साहित्य का ज्ञाता था। कुम्भा ने चार स्थानीय भाषाओं में चार नाटकों की रचना की तथा जयदेव कृत 'गीत गोविन्द' पर 'रसिक प्रिया' नामक टीका भी लिखी।
निर्माण कार्य
राणा कुम्भा ने कुम्भलगढ़ के नवीन नगर एवं क़िलों में अनेक शानदार इमारतें बनवायीं। 'अत्री' और 'महेश' को कुम्भा ने अपने दरबार में संरक्षण प्रदान किया, जिन्होंने प्रसिद्ध 'विजय स्तम्भ' की रचना की थी। राणा कुम्भा ने बसन्तपुर नामक स्थान को पुनः आबाद किया। अचलगढ़, कुम्भलगढ़, सास बहू का मन्दिर तथा सूर्य मन्दिर आदि का भी निर्माण भी उसने करवाया।
मृत्यु तथा उत्तराधिकारी
1473 ई. में उसकी हत्या उसके पुत्र उदयसिंह ने कर दी। राजपूत सरदारों के विरोध के कारण उदयसिंह अधिक दिनों तक सत्ता-सुख नहीं भोग सका। उसके बाद उसका छोटा भाई राजमल (शासनकाल 1473 से 1509 ई.) गद्दी पर बैठा। 36 वर्ष के सफल शासन काल के बाद 1509 ई. में उसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र राणा संग्राम सिंह या 'राणा साँगा' (शासनकाल 1509 से 1528 ई.) मेवाड़ की गद्दी पर बैठा। उसने अपने शासन काल में दिल्ली, मालवा, गुजरात के विरुद्ध अभियान किया। 1527 ई. में खानवा के युद्ध में वह मुग़ल बादशाह बाबर द्वारा पराजित कर दिया गया। इसके बाद शक्तिशाली शासन के अभाव में जहाँगीर ने इसे मुग़ल साम्राज्य के अधीन कर लिया।