Friday 5 September 2014

रूमालों वाला मन्दिर, सैनिकों की अटूट आस्था की प्रतीक तनोट की आवड़ माता

चंदन सिंह मेड़तिया 
जैसलमेर। भारत पाकिस्तान सीमा पर स्थित माता तनोटराय के मन्दिर से भला कौन परिचित नही हैं। भारत पाकिस्तान के मध्य 1965 तथा 1971 के युद्ध के दौरान सरहदी क्षेत्र की रक्षा करने वाली तनोट माता का मन्दिर के नाम से विख्यात हैं। तनोट माता के प्रति आम लोगों के साथ साथ सेनिकों में जबरदस्त आस्था है, यहां श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर दान करने आते हैं । इस मूल मन्दिर के पास में ही श्रद्धालुओं ने रूमालों का शानदार मंदिर बना रखा है, जो देखते बनता हैं। तनोट माता के मन्दिर की देखरेख ,सेवा तथा पूजा पाठ सीमा सुरक्षा बल के जवान ही करते हैं। इस मन्दिर में आने वाला हर श्रद्धालु मन्दिर परिसर के पास अपनी मनोकामना लेकर एक रूमाल बांधता हैं। प्रतिदिन आने वाले सैकड़ो श्रद्धालुओं द्घारा इस परिसर में इतने रूमाल बांध दिए हैं कि रूमालों का एक भव्य मन्दिर ही बन गया। श्रद्धालु मनोकामना पूर्ण होने पर अपना रूमाल खोलने जरूर आतें हैं। मन्दिर की व्यवस्था सम्भालने वाले सीमा सुरक्षा बल के. एस. चौहान ने बताया कि माता के दरबार में आने वाला हर श्रद्धालु अपनी मनोकामना के साथ एक रूमाल जरूर बांधता हैं, मंदिर में 40 हजार से अधिक रूमाल बंधे है। व्यवस्थित रूप से रूमाल बांधने के कारण एक मन्दिर का स्वरूप बन गया है। तनोट माता मन्दिर की ख्याति पिछले पॉच सालों में जबरदस्त बढ़ी हैं। भारत पाक युद्ध 1965 के बाद तो भारतीय सेना व सीमा सुरक्षा बल की भी यह आराध्य देवी हो गई व उनके द्वारा नवीन मंदिर बनाकर मंदिर का संचालन भी सीमा सुरक्षा बल के आधीन है। देवी को शक्ति रूप में इस क्षेत्र में प्राचीन समय से पूजते आये हैं। बहरहाल आस्था के प्रतीक तनोट माता के मन्दिर परिसर में रूमालों का परिसर वाकई दशर्नीय व आश्चर्यचकित हैं।
माता का चमत्कार
सितम्बर 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हुआ। पाकिस्तानी सेना ने तनोट को तीन दिशाओं से घेर लिया और तनोट की ओर बढ़ने लगे। यदि श‍‍त्रु तनोट पर कब्जा कर लेते तो वह रामगढ़ से लेकर शाहगढ़ तक के इलाके पर अपना दावा कर सकते थे। इसलिए पाकिस्तानी सैनिकों ने तनोट पर गोले बरसाने शुरू कर दिये।
उस समय मेजर जय सिंह 13 ग्रेनेडियर की एक कंपनी और सीमा सुरक्षा बल की दो कंपनियां के साथ शत्रु सेना से मुकाबला कर रहे थे। दुश्मनों ने तनोट माता के मंदिर के आसपास के क्षेत्र में करीब 3 हजार गोले बरसाए लेकिन अधिकांश गोले अपना लक्ष्य चूक गए। अकेले मंदिर को निशाना बनाकर करीब 450 गोले दागे गए परंतु चमत्कारी रूप से एक भी गोला अपने निशाने पर नहीं लगा और मंदिर परिसर में गिरे गोलों में से एक भी नहीं फटा और मंदिर को खरोंच तक नहीं आई।
माता का ऐसा चमत्कार देखकर सैनिक उत्साहित हो गये और पाकिस्तानी सैनिकों पर कहर बनकर टूट पड़े। इसके बाद पाकिस्तानी सैनिकों ने जान बचाकर भागना शुरू कर दिया। ऐसे माना जाता है कि सैनिकों को माता ने स्वप्न में आकर कहा था कि जब तक तुम मेरे मंदिर के परिसर में रहोगे मैं तुम्हारी रक्षा करूंगी। सन् 1971 की लड़ाई में भी मां ने ऐसा ही चमत्कार फिर दिखाया था। सैनिकों ने मां के चमत्कार का बखान करने के लिए पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा दागे गये गोलों को मंदिर में संभाल कर रखा है।
ऐसे बना माता का मंदिर
लोक कथाओं के अनुसार तनोट माता एक चारण की पुत्री थी जो हिंगलाज माता का भक्त था। चारण की भक्ति से प्रसन्न होकर माता ने इसके घर कन्या रूप में जन्म लिया। छोटी उम्र से ही माता ने चमत्कार दिखाना शुरू कर दिया। माता ने हूणों के आक्रमण से माड़ क्षेत्र की और भाटी राजाओं को सुदृढ़ बनाया। भाटी राजपूत नरेश ‘तणुराव’ने विक्रम संवत 828 में तनोट माता के मंदिर का निर्माण करवा।

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